ठाकरे भाईयों के बीच मतभेद मिटेगा? जानें क्या उद्धव-राज के मिलने से बदलेगा महाराष्ट्र का सियासी गण

Raj Thackeray On Uddhav Thackeray: महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनस) प्रमुख राज ठाकरे ने शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे से अपने बीच मतभेदों को भुलाकर महाराष्ट्र और मराठी लोगों के हित के लिए एकजुट होने की इच्छा व्यक्त की. एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने मराठी पहचान, मुंबई नगर निगम चुनाव, एकनाथ शिंदे की राजनीति और उद्धव ठाकरे के साथ गठबंधन को लेकर खुलकर बात की.

राज ठाकरे ने कहा, “हमारे बीच विवाद और असहमति बड़े मुद्दों की तुलना में बहुत छोटी हैं. महाराष्ट्र हमारे व्यक्तिगत मुद्दों से कहीं बड़ा है. मराठी पहचान के अस्तित्व की लड़ाई में ये मामले बहुत मामूली हैं. साथ आना या साथ मिलकर काम करना कोई मुश्किल बात नहीं है. यह केवल इच्छाशक्ति का मामला है और यह केवल मेरे बारे में नहीं है. मेरा मानना ​​है कि राजनीतिक दलों के सभी मराठी लोगों को एकजुट होकर एक मोर्चा बनाना चाहिए.”

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में एमएनएस का प्रदर्शन

उनके इस बयान के बाद कई सियासी अनुमान लगाए जाने लगे हैं. मान लिया जाए कि आपसी मतभेद भुलाकर उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे साथ आते हैं तो महाराष्ट्र की राजनीति में कितना परिवर्तन आएगा, इसे समझने की कोशिश करते हैं. राज ठाकरे के नेतृत्व वाली एमएनएस का महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन रहा. पार्टी पिछले दस सालों से खराब प्रदर्शन के बाद वापसी की उम्मीद कर रही थी लेकिन वो अपने निम्न स्तर पर पहुंच गई. 2006 में पार्टी के गठन के बाद 2024 में पहली बार पार्टी का महाराष्ट्र विधानसभा में एक भी विधायक नहीं चुना जा सका, यहां तक कि राज ठाकरे के बेटे भी चुनाव हार गए. पार्टी ने राज्य भर में 128 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिनमें से 26 सीटें मुंबई में थीं.

मुंबई में एमएनएस ने एकनाथ शिंदे की अगुआई वाली शिवसेना को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया. राज ठाकरे की अगुआई वाली पार्टी ने कम से कम सात सीटों- विक्रोली, जोगेश्वरी ईस्ट, डिंडोशी, कलीना, बांद्रा ईस्ट, माहिम और वर्ली पर शिंदे की अगुआई वाली शिवसेना के वोट काटे और इस वजह से उसे शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) से हार का सामना करना पड़ा. इन सीटों पर एमएनएस तीसरे नंबर पर रही और उसने वोटों का एक बड़ा हिस्सा छीन लिया.

ठाकरे भाइयों के साथ आने से कितना बदल जाएगा महाराष्ट्र का सियासी गणित?

अगर महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखा जाए तो राज ठाकरे की पार्टी एमएनएस ने निराशाजनक प्रदर्शन किया. इसके बावजूद पार्टी ने नतीजों का आकार बदलने में अहम भूमिका निभाई थी. एमएनएस की भूमिका की वजह से ही उद्धव ठाकरे की शिवसेना के लिए मुंबई में जीत का रास्ता साफ किया था.

उद्धव की सेना की जीती गईं 20 सीटों में से 10 सीटें एमएनएस प्रत्याशियों को मिले वोटों से भी कम अंतर से जीती गईं. इससे उद्धव ठाकरे को अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता बनाए रखने में मदद मिली, खासकर मुंबई में जहां 10 में से 8 सीटों पर करीबी मुकाबला देखने को मिला. इन 8 सीटों पर एमएनएस ने एकनाथ शिंदे की शिवसेना के वोट छीने और इससे मदद मिली उद्धव ठाकरे को.

राज ठाकरे ने 2006 में बनाई थी एमएनएस

एमएनएस का जन्म 2006 में हुआ था, जब राज ने शिवसेना के संस्थापक और अपने चाचा बाल ठाकरे के खिलाफ विद्रोह कर दिया था और पार्टी से बाहर चले गए थे. उनके चाचा बाला साहेब ने अपने बेटे उद्धव को अपना उत्तराधिकारी बनाने का फैसला किया था. पार्टी के गठन के बाद राज ठाकरे को सफलता भी मिली. 2009 के लोकसभा चुनावों में पार्टी ने 11 उम्मीदवार उतारे और सभी को हार का सामना करना पड़ा, लेकिन कई सीटों पर शिवसेना को नुकसान पहुंचाकर लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा. उसी साल विधानसभा चुनावों में एमएनएस ने 143 सीटों पर चुनाव लड़ा और अपनी पहली ही कोशिश में महाराष्ट्र विधानसभा में 13 विधायक पहुंचे.

हालांकि, इसके से बाद से एमएनएस की किस्मत पलटी और 2014 के लोकसभा चुनावों में पार्टी ने 10 उम्मीदवार उतारे, जिनमें से सभी की जमानत जब्त हो गई. विधानसभा चुनावों में, एमएनएस ने 288 में से 219 सीटों पर चुनाव लड़ा, 209 सीटों पर जमानत जब्त हुई और सिर्फ एक सीट पर जीत मिली. फिर 2019 के लोकसभा चुनावों में एमएनएस ने हिस्सा ही नहीं लिया, लेकिन महाराष्ट्र चुनावों में उसने 101 सीटों पर चुनाव लड़ा और एक बार फिर सिर्फ एक सीट जीत सकी. इसके बाद के चुनाव में पार्टी को एक सीट भी नहीं मिली.

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