
क्या है आर्टिकल 142, जिसे उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बता दिया ‘न्यूक्लियर मिसाइल’?
Vice President Dhankhar On Article 142: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार (17 अप्रैल, 2025) को न्यायपालिका की ओर से कार्यपालिका और विधायिका के कार्यों में हस्तक्षेप करने पर गंभीर सवाल उठाए. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की ओर से राष्ट्रपति को निर्देश दिए जाने के संदर्भ में कहा कि भारत ने ऐसा लोकतंत्र नहीं सोचा था जहां न्यायाधीश कानून बनाएंगे, कार्यपालिका के कार्य भी खुद ही करेंगे और खुद को संसद से ऊपर रखेंगे.
जगदीप धनखड़ ने आर्टिकल-142 को लेकर भी चिंता जताई. उन्होंने कहा कि यह आर्टिकल अब न्यायपालिका के लिए न्यूक्लियर मिसाइल बन चुका है, जिसका इस्तेमाल लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को दरकिनार करने में किया जा रहा है.
क्या है आर्टिकल 142?
भारतीय संविधान का आर्टिकल 142 सर्वोच्च न्यायालय को यह शक्ति देता है कि ‘वह पूरी तरह से न्याय’ सुनिश्चित करने के लिए कोई भी आदेश, निर्देश या निर्णय पारित कर सके. इसका उपयोग तब किया जाता है जब वर्तमान कानूनों में कोई स्पष्ट रास्ता नहीं होता या जब न्यायिक प्रक्रिया में कोई बाधा उत्पन्न होती है.
आर्टिकल 142 का सुप्रीम कोर्ट ने कैसे किया इस्तेमाल
8 अप्रैल 2024 को तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल आर. एन. रवि के बीच जारी गतिरोध पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने ऐतिहासिक निर्णय सुनाया. राज्यपाल ने राज्य विधानसभा से पारित 10 विधेयकों पर कोई निर्णय नहीं लिया था. इसके बाद विधानसभा ने उन्हें फिर से पारित किया. इस पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि जब कोई बिल दोबारा पारित होता है, तो राज्यपाल के पास उसे मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता, जब तक उसमें कोई बड़ा बदलाव न हो. इस फैसले में कोर्ट ने आर्टिकल 142 का उपयोग कर सभी 10 विधेयकों को “स्वीकृति” दे दी. इसे “पूर्ण न्याय” का उदाहरण माना गया.
पहले भी कई अहम मामलों में हुआ है आर्टिकल 142 का इस्तेमाल
अयोध्या विवाद (2019): ऐतिहासिक राम मंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 142 का इस्तेमाल कर विवादित जमीन हिंदू पक्ष को दी और मुस्लिम पक्ष को वैकल्पिक 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया.
सहारा-बिरला डायरी केस: कोर्ट ने जांच की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए इसी आर्टिकल का इस्तेमाल किया.
प्रवासी मजदूर संकट (2020 COVID काल): राहत के आदेश पारित करने में भी इस आर्टिकल की सहायता ली गई.
उपराष्ट्रपति धनखड़ की आपत्ति क्या है?
राज्यसभा इंटर्नशिप कार्यक्रम के समापन समारोह में बोलते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि न्यायपालिका को राष्ट्रपति को निर्देश देने का अधिकार नहीं होना चाहिए. उन्होंने संविधान की व्याख्या के लिए केवल संविधान पीठ (5 या अधिक जजों की पीठ) को ही अधिकृत बताया. धनखड़ ने आर्टिकल 145(3) का जिक्र करते हुए कहा कि इसमें संशोधन की आवश्यकता है ताकि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय प्रक्रिया पारदर्शी और संविधान सम्मत बने. उन्होंने कहा, “आर्टिकल 142 अब न्यायपालिका के लिए 24×7 उपलब्ध ‘परमाणु मिसाइल’ बन गया है, जिसका प्रयोग लोकतांत्रिक संस्थाओं के संतुलन को प्रभावित करता है.”
न्यायपालिका बनाम कार्यपालिका
धनखड़ की टिप्पणी ने कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच चल रही संवैधानिक बहस को और हवा दी है. एक तरफ न्यायपालिका का कहना है कि जब कानून मौन हो तो उन्हें “पूर्ण न्याय” के लिए कार्रवाई करनी चाहिए. वहीं कार्यपालिका का मानना है कि इससे लोकतांत्रिक प्रणाली में असंतुलन आ सकता है.